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Showing posts from February, 2020

कविता - मैं किसी की सुनता नही हूँ

जो राह मंज़िल मिला रही हो, दिमाग चाहे थका रही हो, लक्ष्य तक पहुँचे बिना, मैं कही रूकता नही हूँ, सपनो की जब बात हो, तो मैं किसी की सुनता नही हूँ || लोग चाहे हो बुरे, तर्क-वितर्क से घेरे, उन बेकार बहस में, मैं उलझता नही हूँ, सपनो की जब बात हो, तो मैं किसी की सुनता नही हूँ ||

कविता - सब जाग रहे तू सोता रह

माना    है  मंज़िल मिली नही, राह तो तुझसे छीनी नही, बेकार की उलझन  फ़सा  रह,    सब जाग रहे तू सोता रह, किस्मत को थामें रोता रह।। नई चुनोतियाँ आएगी, बहा तुझे ले जाएगी, तू आखँ मूँद बस बैठा रह, सब जाग रहे तू सोता रह, किस्मत को थामें रोता रह।। रात के सपने पूरे कर, दिन के कई बहाने हैं, जो अनमोल खज़ाना मिला तुझे, तू बैठ खज़ाना खोता रह, सब जाग रहे तू सोता रह,  किस्मत को थामें रोता रह।। मंज़िल तेरी आसान नही, जो राह दे ना दिखाई कहीं, तू राह खुद बनाता रह, तू काम में अपने खोता रह, किस्मत से आगे होता रह।।